ग्रह परिचय : ज्योतिष में नौ ग्रहों में शनि का महत्व और शनि के द्वारा बने योग

ग्रह परिचय : ज्योतिष में नौ ग्रहों में शनि का महत्व और शनि के द्वारा बने योग

शनि देव का स्थान नवग्रहों में न्यायाधीश या दंडाधिकारी का माना जाता है. सौर मंडल में शनि देव के होने से ही पृथ्वी पर पाप और पुण्य का समतोल बन पाया है, शनि देव की माने तो शनि देव मानव को मानव बनना सिखाता है. शनि देव आपके जीवन की वो परीक्षा है, जो किसी कार्य को आपसे बार बार कराकर उस कार्यका मूल्य आपको समजाता है. इसिलए बार बार कोई कार्य करने पर किसी व्यक्ति या इनसान के पास पर्याप्त मात्रा में अनुभव की प्राप्ति होती है, तो वो व्यक्ति उस कार्य के लिए कभी गलती नहीं करता है.

नौ ग्रहों मे राहु केतु शनि देव के सेवक माने जाते है, तो बुध और शुक्र मित्र ग्रह माने जाते है. शनि देव को कलियुग का परम दंडाधिकारी कहा जाता है, शनि देव के साढ़ेसाती के चलते पुरुषोत्तम श्रीराम को वनवास जाना पड़ा, तो पांडवों को दर दर भटकना पड़ा. वैदिक ज्योतिष में शनि देव को सूर्य पुत्र कहा जाता है, शनि देव का स्वभाव उग्र और पापी है, लेकिन अपने राशि और स्थान पर शुभ फल देने में भी सक्षम होते है.

शनि देव के अधिकार क्षेत्र :

शनि देव को कर्म और सेवा का स्वामी कहा जाता है, इसी कारन सभी प्रकार की सेवा और नौकरी में विशेषकर मजदुर, निम्न स्तर के पदों वाली नौकरियां शनि के अधिकार में आती है. काला रंग, काला धन, लोहा, लोहार, मशीने, कारखाने, सभी कारीगर, मजदूरी करने वाले, चुनाई करने वाला, लोहे के औजार व सामान, भैंसा, मगर मच्छ, सांप, जादू, मंत्र, जीव हत्या, खजूर, अलताश का वृक्ष, लकड़ी, छाल, ईंट, सीमेंट, पत्थर, सूती, गोमेद, नशीली वस्तु, जल्लाद, डाकू, चीर फाड़ करने वाला डॉक्टर, चालाक, तेज नज़र, चाचा, मछली, भैंस, मांस, बाल, खाल, तेल, पेट्रोल, स्पिरिट, शराब, उड़द, बादाम, नारियल, जूता, जुराब, चोट, हादसा इन सभी पर शनि देव का प्रभाव और अधिकार है.

शनि देव का गोचर भ्रमण और साढ़ेसाती

गोचर में शनि देव का भ्रमण कल करीब ढाई वर्ष का होता है. जिस राशि पर से भ्रमण होता है, उस राशि को और उसके अगले पिछले राशि को साढ़ेसाती होती है. शनि देव साढ़ेसाती करीब साढ़ेसात साल तक चलती है, इस साढेसातीके समय जातक को जीवन को लेकर शनि देव अच्छे बुरे अनुभव करा देता है, और साढ़ेसाती के अंत समय में जातक को जीवन को जीने और देखने की नई सोच दे जाता है.

शनि देव के द्वारा कुंडली में योग

शनि कुंडली के केंद्र या त्रिकोण में अपनी या मित्र राशि में, यानि मकर, कुंभ या तुला में विराजमान हो तो, शश योग बनाता है. ऐसा जातक या व्यक्ति चाहे जन्मसे कितना ही गरीब क्यूँ न हो, अपनी मेहनत और बलबूते पर समाज में बड़ा पद हासिल करता है.

शनि देव के साढ़ेसाती के उपाय

शनि देव या हनुमानजी की आराधना करने से साढ़ेसाती का प्रभाव कम जरूर हो सकता है लेकिन जीवन प्रारब्ध भोग कभीभी टाला नहीं जा सकता, इसीलिए जीवन में हमेशा अच्छे कर्म कीजिये, सत्य को पराजित ना करे तो, शनि देव आपके सहायक बनेंगे.

शनि देव का मंत्र
ऊँ शं शनैश्चराय नम:

शनि देव का बीज मंत्र
ॐ प्राँ प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः ॥

शनि देव का वैदिक मंत्र
ॐ शं नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये।

शनि देव का मूल मंत्र
नीलांजन समाभासं रवि पुत्रां यमाग्रजं। छाया मार्तण्डसंभूतं तं नामामि शनैश्चरम्॥

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