शिव चालीसा | Lord Shiv Chalisa in Hindi
वैदिक मान्यता नुसार भगवान शिव विश्व निर्माण के मूलाधार है. शिव शंकर, भुत, प्रेत, मनुष्य, देव, दानव सहित सभी योनियो के लिए आराध्य है. शिव चालीसा शिवजी को प्रसन्न करने के लिए एक अच्छा माध्यम माना गया है. त्रिदेवों में शिव एक ऐसे आराध्य है. जो थोड़ी भक्ति से जल्दी और आसानी से प्रसन्न होते है. इसलिए शिवजी को बोले बाबा भी कहा गया है.
भगवान शिवजी की आराधना के लिए शिव चालीसा के आलावा उनके बहोत से मन्त्र है. इसमें मुख्य रूप से और लोक प्रिय मन्त्र ॐ नमः शिवाय मन्त्र है. श्रावण के मास में शिव जी भक्ति बहोत ही लाभकारी सिद्ध होती है. श्रावण महीने में भक्ति भाव से की गई शिवजी की पूजा शिवजी बहोत ही प्रिय होती है.
कर्क राशि के लिए शिवजी है आराध्य
कुंडली में चन्द्रमा कर्क राशि में हो तो ऐसे जातक या व्यक्ति के लिए शिवजी आराध्य होते है. कर्क राशि के जातको ने हर सोमवार को महादेव के शिवलिंग पर चावल, बेलपत्ते, सफ़ेद फूल और पानी या दूध से किया अभिषेक इन जातकों के लिए लाभकारी सिद्ध होता है. ऐसे जातकोंको मानसिक रूप से शांति मिलती है.
शिव चालीसा का नित्य पठन करने के फायदे
शिव चालीसा पठन करने से मानसिक शांति, क्लेश जैसी समस्याएं दूर हो सकती है. मानव सहित, अनेक देव, दानव और पशु भी शिवजी की आराधना करते है. इसलिए शिवजी की प्रत्येक आराधनासे बड़ा पुण्य प्राप्त होता है. इसलिए शिव चालीसा पठन सोमवार या श्रावण के प्रत्येक दिन को अवश्य करना चाहिए
शिव चालीसा लिरिक्स और पीडीएफ
ज्योतिष गाइड के चालीसा कैटेगरी में शिव चालीसा लिरिक्स (Shiv Chalisa Lyrics) दिया गया है. साथ में शिव चालीसा पीडीएफ (Shiv Chalisa PDF) डाऊनलोड की सुविदा दे दी गई है.
जय गिरिजा पति दीन दयाला…
|| चालीसा दोहा ||
श्री गणेश गिरिजा सुवन ! मंगल मूल सुजान ।
कहत अयोध्या दास तुम, देहु अभय वरदान॥
जय गिरिजा पति दीन दयाला । सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥
जय गिरिजा पति दीन दयाला । सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥
भाल चन्द्रमा सोहत नी के । कानन कुण्डल नागफनी के ॥
अंग गौर शिर गंग बहाये । मुण्डमाल तन छार लगाये ॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे । छवि को देख नाग मुनि मोहे॥1॥
मैना मातु की ह्वै दुलारी । बाम अंग सोहत छवि न्यारी ॥
मैना मातु की ह्वै दुलारी । बाम अंग सोहत छवि न्यारी ॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी । करत सदा शत्रुन क्षयकारी ॥
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे । सागर मध्य कमल हैं जैसे ॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ । या छवि को कहि जात न काऊ॥2॥
देवन जबहीं जाय पुकारा । तब ही दुख प्रभु आप निवारा ॥
देवन जबहीं जाय पुकारा । तब ही दुख प्रभु आप निवारा ॥
किया उपद्रव तारक भारी । देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी ॥
तुरत षडानन आप पठायउ । लवनिमेष महँ मारि गिरायउ ॥
आप जलंधर असुर संहारा । सुयश तुम्हार विदित संसारा ॥3॥
त्रिपुरा सुर सन युद्ध मचाई । सबहिं कृपा कर लीन बचाई ॥
त्रिपुरा सुर सन युद्ध मचाई । सबहिं कृपा कर लीन बचाई ॥
किया तपहिं भागीरथ भारी । पुरब प्रतिज्ञा तसु पुरारी ॥
दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं । सेवक स्तुति करत सदाहीं ॥
वेद नाम महिमा तव गाई । अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥4॥
प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला । जरे सुरा सुर भये विहाला ॥
प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला । जरे सुरा सुर भये विहाला ॥
कीन्ह दया तहँ करी सहाई । नीलकण्ठ तब नाम कहाई ॥
पूजन रामचंद्र जब कीन्हा । जीत के लंक विभीषण दीन्हा ॥
सहस कमल में हो रहे धारी । कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी ॥5॥
एक कमल प्रभु राखेउ जोई । कमल नयन पूजन चहं सोई ॥
एक कमल प्रभु राखेउ जोई । कमल नयन पूजन चहं सोई ॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर । भये प्रसन्न दिए इच्छित वर ॥
जय जय जय अनंत अविनाशी । करत कृपा सब के घटवासी ॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै । भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै ॥6॥
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो । यहि अवसर मोहि आन उबारो॥
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो । यहि अवसर मोहि आन उबारो॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो । संकट से मोहि आन उबारो ॥
मातु पिता भ्राता सब कोई । संकट में पूछत नहिं कोई ॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी । आय हरहु अब संकट भारी ॥7॥
धन निर्धन को देत सदाहीं । जो कोई जांचे वो फल पाहीं ॥
धन निर्धन को देत सदाहीं । जो कोई जांचे वो फल पाहीं ॥
अस्तुति के हि विधि करौं तुम्हारी । क्षमहु नाथ अब चूक हमारी ॥
शंकर हो संकट के नाशन । मंगल कारण विघ्न विनाशन ॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं । नारद शारद शीश नवावैं ॥8॥
नमो नमो जय नमो शिवाय । सुर ब्रह्मादिक पार न पाय ॥
नमो नमो जय नमो शिवाय । सुर ब्रह्मादिक पार न पाय ॥
जो यह पाठ करे मन लाई । ता पार होत है शंभु सहाई ॥
ॠनिया जो कोई हो अधिकारी । पाठ करे सो पावन हारी ॥
पुत्र हीन कर इच्छा कोई । निश्चय शिव प्रसाद ते हि होई ॥9॥
पण्डित त्रयोदशी को लावे । ध्यान पूर्वक होम करावे ॥
पण्डित त्रयोदशी को लावे । ध्यान पूर्वक होम करावे ॥
त्रयोदशी ब्रत करे हमेशा । तन नहीं ताके रहे कलेशा ॥
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे । शंकर सम्मुख पाठ सुनावे ॥
जन्म जन्म के पाप नसावे । अन्तवास शिवपुर में पावे ॥10॥
कहे अयोध्या आस तुम्हारी । जानि सकल दुःख हरहु हमारी ॥
॥दोहा॥
नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा । तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश ॥ मगसर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान । अस्तुति चालीसा शिवहि ! पूर्ण कीन कल्याण ॥
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