राजनीति में सफलता के साथ सांसद, विधायक या मंत्री बनकर सत्ता में शामिल होने के योग
राजनीति की बात अगर की जाए, तो इस समय बहुत सारा युवा वर्ग इसे करियर के रूप में देख रहा है. ऐसे वक्त कुंडली के जरिये ज्योतिषीय आधार पर, करियर के रूप में क्या राजनीति एक अच्छा विकल्प हो सकता है, यह देखना अत्यंत आवश्यक है. राजनीति में सफल होने की कितनी संभावना बन सकती है, यह कुंडली के भाव और ग्रहों द्वारा देखा जा सकता है.
किसी व्यक्ति को राजनीतिक समज के लिए कर्क, सिंह तुला और मकर राशियों को ज्यादा प्राथमिकता दी जाती है, साथ ही, सूर्य, चंद्र, गुरु और राहु इन चार ग्रहों को राजनीति के कारक ग्रह माने जाते है. शनि प्रजा का हितेषी और सेवक ग्रह माना जाता है, इसलिए शनि सीधा प्रशासन या सरकार बनाने में हिस्सा नहीं लेता. अगर कुंडली में शनि मजबूत स्थिति में उच्च के, स्वराशि, मूलत्रिकोणी हो तो जातक राजनीती में कितना और कितनी देर तक सफल हो सकता है, यह देखा जा सकता है.
चुनाव जीतना, और सत्ता स्थापन करना दो अलग बातें
जातक की कुंडली में प्रथम, चतुर्थ, पंचम, षष्ट, नवम, दशम तथा एकादश भाव राजनीति के लिए बहोत महत्वपूर्ण होते है. लेकिन यह बिलकुल नहीं की सत्ता प्राप्त करने या चुनाव जितने के लिए जातक को इतने सारे भाव या स्थानों की जरुरत है. चुनाव जीतकर सांसद, या विधायक बनना, बिना चुनाव जीते सांसद बनना, सांसद बनकर सत्ता प्राप्त करना, और सत्ता में हो तो सरकारी मंत्री बनना यह सरे अलग विषय है. इसलिए इन सभी कार्य के लिए अलग अलग स्थान या भाव देखे जाते है. इसके बारे में आगे हम विस्तार से जानते है.
राजनीति के लिए कुंडली के भाव विचार
प्रथम स्थान व्यक्ती के स्वयं के लिए महत्व पूर्ण है. क्यूंकि प्रथम भाव से व्यक्ति की नेतृत्व क्षमता देखने को मिलती है. प्रथम भाव मजबूत ना हो, तो व्यक्ति के राजनीतिक जीवन में उतार चढाव देखने को मिलते है. चतुर्थ भाव जनता के बिच जाकर चुनाव लड़ने का भाव है, चुनाव के लिए जनता से प्रेम मिलना अत्यंत जरुरी होता है. इसलिए चतुर्थ भाव जनता और चुनाव को दर्शाता है. पंचम भाव मंत्रालय का होता है. पांचवे भाव से मंत्रियों को देखा जाता है. षष्ट भाव राजनीती, और स्पर्धा करने वाला भाव माना जाता है. राजनीती में स्पर्धा कर के ही चुनाव में विजय प्राप्त किया जाता है. षष्ट भाव सभी तरीके की सेवा को भी दर्शाता है. नवम भाव सरकारी प्रशासन दर्शाता है, चुनाव जितने के बाद मंत्री या सरकार का एक हिस्सा बनने के लिए इस भाव के बिना मुश्किल होता है. दशम भाव जातक का कर्म दिखाता है, तथा दशम भाव से केंद्र सरकार, या राज्य सरकार देखि जाती है. लाभ या ग्यारवे भाव से विधानसभा तथा लोकसभा, राज्यसभा देखि जाती है.
सफल राजनीति के ज्योतिष योग
यदि जातक की कुंडली में प्रथम, चतुर्थ, पंचम, षष्ट, नवम, दशम तथा एकादश भाव के मालिक ग्रह एक दूसरे के दृष्टी में या इन्ही स्थानों में युति बनाकर बैठे हो, यदि चंद्र चतुर्थ भाव में, गुरु नवम भाव में, सूर्य दशम भाव में, और राहु लाभ भाव में बैठे हो, तो व्यक्ति राजनीति में सफलता की सीढिया चढ़ता है. ग्यारवे, दसवे और षष्ट भाव का राहु राजनीती में और ज्यादा सफल बनाता है, चाहे यह जातक राजनीती में हो ना हो, लेकिन व्यक्तिगत जीवन में यह जातक किसी भी योजना को अच्छे से अंजाम दे सकता है. क्यूंकि सभी तरह की योजनाओं का कारक राहु को माना जाता है.
मंत्री बन सरकार में शामिल होने के योग
राजयसभा से सांसद और मंत्री बनने के लिए पंचम, षष्ट, नवम, दशम और लाभ भाव जरुरी होता है. लोकसभा से सांसद बनने ने के लिए चतुर्थ, षष्ट, दशम और एकादश भाव ज्यादा महत्वपूर्ण होते है. पंचम और नवम भाव मजबूत ना होने पर जातक सांसद तो बनेंगे लेकिन मंत्री नहीं बन पाते है, तथा इनमे मूल कुंडली या गोचर स्थिति से दशम भाव कमजोर पड़े तो जातक अपने लोकसभा क्षेत्र में सांसद तो बनेगा लेकिन सत्ता धारी पक्ष में नहीं बल्कि विरोधी पक्ष में होगा.
यदि राहु का सबंध लाभ या दशम भाव से आजाये तो योजना पूर्वक सत्ता पाने वाला जातक होगा. यदि मंगल का सबंध दशम भाव से आजाये, तो बड़ा संघर्ष करने के बाद सत्ता पा लेता है. यदि अष्टम, दशम और लाभ भाव का सबंध बन जाए, तो जातक गुप्त योजनों के तहत सत्ता प्राप्त करता है. यदि दशम और लाभ भाव का सबंध बारवे भाव से आजाये, तो जातक रिश्वत देकर सत्ता को प्राप्त करता है. यदि दशम और लाभ भाव का संबंध तीसरे भाव से आजाये, और तीसरे भाव में, मंगल या राहु जैसे ग्रह हो, तो जातक गुंडागिरी या बाहुबली बनकर सत्ता प्राप्त करता है. ऊपर दिए योगो में राहु और केतु का योगदान महत्वपूर्ण है, क्यूंकि राहु सभी योजनाओंका कारक ग्रह माना जाता है तो केतु सभी योजनाओं को गुप्त रखने का कारक माना जाता है.
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