प्रेम विवाह योग में विवाह के बाद प्रेमी दुश्मन क्यों बन जाते है ?

प्रेम विवाह योग में विवाह के बाद प्रेमी दुश्मन क्यों बन जाते है ?

कुंडली में प्रेम विवाह योग होने बहुत पर यह स्थिति उत्पन्न होती है. व्यक्ति प्रेम में अंधा हो जाता है. लेकिन विवाह होने पर उनके कुल जाती है. विवाह या शादी को हिंदू रीति रिवाजों में, पवित्र बंधन कहा जाता है. एक ज़माने में शादी एरेंज ही हुआ करती थी. मात्र जैसा समय बीतता गया, वैसे ही शादी के रिवाजो में भी हमें बदलाव देखने को मिले.

जैसे जैसे एक पीढ़ी पीछे गई, जब नई पीढ़ी ने उनकी जगह ली, तो पुराने पीढ़ी के विचार भी पुराने होते दिखाई दिए. ऐसे वक्त लव्ह कम अरेंज शादी करने का ट्रेंड भी शुरू हो गया.

अब माता पिता अपने बच्चोंकी ख़ुशी को ज्यादा प्राथमिकता देते दिखाई देते है. अब माता पिता की अनुमति देने के बाद एक दूसरे से रिश्ता निभाने के लिए बच्चों की जिम्मेदारी और बढ़ जाती है. लेकिन बहुत बार समाज में प्रेम विवाह भी सफल होते हुए दिखाई नहीं देता है.

शादी के बाद एक दूसरे के जानी दुश्मन बन जाते है

आज के विषय में हम यही देखेंगे. शादी से पहले एक दुसरे के बिना ना रह पाने वाले प्रेमी और प्रेमिका. शादी के बाद एक दूसरे के जानी दुश्मन बन जाते है. और आखिरकार माता पिता को बिच बचाव करना पड़ता है. बहोत बार यह मामला कोर्ट कचेरी तक पहुँच जाता है. आइये जानते है, ज्योतिष के सहारे की वो कौन से कारन है. जिससे प्रेम विवाह के बावजूद यह नौबत आती है.

प्रेम विवाह योग

प्रेम विवाह के योग (Love Marriage Yoga )

कुंडली में पंचम भाव प्रेम का कारक भाव है. तथा सप्तम भाव विवाह या जीवन साथी का भाव है. जब कुंडली में पंचम भाव में शुक्र हो, या सप्तमेश शुक्र के साथ विराजित हो, पंचम और सप्तम भाव में किसी भी प्रकार का सबंध आजाये, पंचमेश सप्तम भाव में, सप्तमेश पंचम भाव में या सप्तमेश पंचमेश की एक दूसरे पर दृष्टी हो तो जातक का प्रेम विवाह होता है. यदि पंचम भाव में मंगल हो तो शादी के लिए बड़ा संघर्ष करने के बाद जातक का विवाह हो पाता है.

इस लिए प्रेमी बनता है जानी दुश्मन

अब जानते है की, शादी से पहले दोनों के रिश्ते अच्छे क्यों थे ? शादी से पहले प्रेमी के साथ रिश्ते मतलब पंचमेश और लग्न स्वामी का रिश्ता. अगर इन दो में अच्छी दोस्ती या शुभ प्रभाव हो. तो जातक अपने प्रेमी के साथ शादी से पहले बड़े प्रेम से रहता है, और उतना ही प्रेम उसे मिल पाता है. शादी के बाद एक प्रेमी का रिश्ता पति में या पत्नी में बदल जाता है. तो यहाँ कुंडली में सप्तमेश सक्रीय हो जाता है.

अगर सप्तमेश षष्ट भाव, या बारवे भाव में हो, या सप्तम भाव में तृतीयेश, षष्टेश, द्वादशेश बैठ जाये तो दोनों के रिश्तो में कडवापन जरूर आता है. यदि सप्तमेश का सबंध षष्टभाव या द्वादश भाव से आजाये, तो मामला कोर्ट कचेरीतक पहुँच जाता है. अगर शनि सहित मंगल की दृष्टी सप्तम भाव पर आजाये, तो रिश्ते में कट्ठास पैदा होती है. ऐसे में किसी शुभ ग्रह का प्रभाव सप्तम भाव या सप्तमेश पर हो, तो शादी टूटते टूटते बचती है.

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तो साथी जातक से बहस करने वाला होता है

यदि तृतीयेश सबंध सप्तम भाव से आजाये, तो जातक की पत्नी या पति ज्यादा बहस करनेवाली होती है. ऐसे में दूसरा साथी समंजस ना हो तो मामला बाकी घरवालोंको सुलझाना पड़ता है.

इसलिए पंचम भाव और सप्तम भाव के अपने अपने फल है. सप्तम भाव तभी फल देगा जब प्रेम शादी में बदल जाएगा. इसलिए शादी से पहले और शादी के बाद, प्रेमी या प्रेमिका के स्वभाव में बदलाव हुआ दिखाई देता है.

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