शनि की मूर्ति काली क्यों है ? और पिंपल के पेड़ की पूजा क्यों करते है ?

शनि की मूर्ति काली क्यों है ? और पिंपल के पेड़ की पूजा क्यों करते है ?

शनि की मूर्ति काली क्यों है ? शनि लंगड़ाते क्यों है ? और पिंपल के पेड़ की पूजा क्यों की जाती है ?
यह कहानी पौराणिक कथाओंमे से एक है. आज हम विस्तार से जानेंगे, शनि की मूर्ति काली क्यों है और पिंपल के पेड़ की पूजा क्यों की जाती है ?

शनि महाराज और पिंपल का पेड़

महर्षि दधीचि के अस्थिविहीन शरीर का अंतिम संस्कार शमशान में चिता पर किया जा रहा था और वहीं उनके आश्रम में उनकी पत्नी पति वियोग के कारण पागल हो गई थी।

पीड़ा को सहन न कर पाने के कारण उसने अंत में अपने तीन साल के आयु के बच्चे को अपने आश्रम के पिंपल के पेड़ में ढोली में रख दिया और अपने पति की चिता पर बैठ कर सती चली गई। इस प्रकार महर्षि दधीचि के साथ उनकी पत्नी ने भी देवताओं के युद्ध में अपना बलिदान दे दिया ।

यहां पिंपल के पेड़ के ढोली में रखा बच्चा प्यास और भूख से तड़प रहा था । चूँकि उसे खाने को कुछ नहीं मिला, इसलिए उसने ढोली में गिरे पिम्पल के फल और पत्तो को खा लिया। पिम्पल के पेड़ की ढोली उसका घर बन गया। धीरे-धीरे बच्चा बड़ा होने लगा। वह पेड़ के ढोली में सुरक्षित महसूस करता था।

ढोली में एक छोटा लड़का देख नारद हैरान रह गए

एक दिन जब महर्षि नारद वहां से गुजर रहे थे, तो उन्होंने एक पिंपल के पेड़ के ढोली में एक छोटा लड़का देखा। नारद हैरान रह गए। उन्होंने छोटे लड़के से सवाल पूछे और उसके बारे में जानकारी लेने की कोशिश की |

नारद: हे बालक, तुम कौन हो?
बच्चा: मुझे भी नहीं पता। मैं यही जानना चाहता हूं।
नारद: तुम्हारे माता-पिता कौन हैं?
बच्चा: मुझे भी नहीं पता। मैं वही जानना चाहता हूँ.

महर्षि नारद ने बच्चे बताया अपने पिता के बारे में..

तब महर्षि नारद ने ध्यान किया और जो कुछ उन्होंने देखा उससे चकित रह गए। उन्होंने कहा, “हे बालक, आप महर्षि दधीचि, महादानी के पुत्र हैं। आपके पिता की हड्डियों की सहायता से, देवताओं ने वज्र नामक एक हथियार बनाया, और उस हथियार की मदद से देवता असुरों को हराने में सक्षम रहे । जब उनका अंतकाल हुआ तब तुम्हारे पिता केवल इकतीस वर्ष के थे।”

महर्षि दधीचि के अकाल मृत्यु का कारण क्या था ?

बच्चा : मेरे पिता की अकाल मृत्यु का कारण क्या था ?
नारद : आपके पिता की शनि की महादशा चल रही थी।
बच्चा: मेरे साथ ऐसा भयानक संकट आने का क्या कारण होना चाहिए?
नारद: शनि की महादशा ।

यह कह कर नारद ने उस बालक का नाम पिप्पलाद रखा, जो पीपल के वृक्ष के पत्तों और फलों पर रहता था और उसे ज्ञान की दीक्षा दी।

नारद के जाने के बाद, पिप्पलाद ने नारद के कहने पर घोर तपस्या करके ब्रह्म देव को प्रसन्न किया। जब भगवान ब्रह्म देव ने पिप्पलाद से वरदान मांगने के लिए कहा, तो पिप्पलाद ने विनती की कि ‘मैं जिस किसी को भी देखूं, वह उसी क्षण भस्म हो जाए’।

ब्रह्म देव ने पिप्पलाद को “तथास्तु” कहा

भगवान ब्रह्म देव ने पिप्पलाद को “तथास्तु” के रूप में वर दिया। यह वर मिलते ही पिप्पलाद ने सबसे पहले शनिदेव की आराधना की। उसी के साथ शनिदेव प्रकट हुए। शनिदेव के सामने आते ही पिप्पलाद ने उन पर अपनी दृष्टि गड़ा दी और तीव्र दृष्टी के कारण शनि देव का शरीर जलने लगा। यह देख पूरा ब्रह्मांड हिल गया। पिप्पलाद को ब्रह्म देव द्वारा दिए गए वरदान के कारण देवताओं के लिए सूर्य के पुत्र शनि को बचाना असंभव था। अपने पुत्र के शरीर को अपनी आंखों के सामने जलता देख सूर्य ने भी ब्रह्म देव से अपने बेटे के जीवन की भीख मांगी।

स्वयं ब्रह्म देव ने पिप्पलाद से शनि देव को छोड़ने की विनंती की

अंत में, स्वयं ब्रह्म देव ने पिप्पलाद से शनि देव को छोड़ देने का अनुरोध किया। लेकिन पिप्पलाद ने उस अनुरोध को अस्वीकार कर दिया। अंत में ब्रह्म देव पिप्पलाद को एक के बदले दो वरदान देने के लिए तैयार हो गए।

तब पिप्पलाद प्रसन्न हुआ और उसने ब्रह्म देव के अनुरोध को स्वीकार कर लिया। पिप्पलाद ने ब्रह्म देव से दो वरदान मांगे।

1} जन्म के बाद पहले ढाई वर्षों तक किसी भी बच्चे को शनि परेशांन नहीं करेगा, जिससे कोई भी बच्चा मेरे जैसा अनाथ न हो जाए।
2} मेरे जैसे अनाथ को पिंपल के पेड़ ने आश्रय दिया है। इसलिए जो व्यक्ति सूर्योदय से पहले पिंपल के पेड़ को जल चढ़ाएगा, उस पर शनि की साढ़े साथी या महादशा का प्रभाव नहीं पड़ेगा ।

ब्रह्मदंड के प्रभाव से शनि की टांगें अपाहिज हो गई

“तथास्तु” कहकर ब्रह्म देव वहाँ से लुप्त हो गए। तब पिप्पलाद ने अपने ब्रह्म-दंड से आग में जल रहे भगवान शनि के पैरों पर प्रहार किया और उन्हें शाप दिया। ब्रह्मदंड के प्रभाव से शनि की टांगें अपाहिज हो गई थीं और वह पहले जैसे चल नहीं पा रहा था।

इसलिए शनि को “शनै: चरती या: शनैश्चर:” कहा जाता है

इसलिए तब से शनि को “शनै: चरती या: शनैश्चर:” कहा जाता है. जिसका अर्थ है धीरे-धीरे चलने वाला शनैश्वर । और शनि का शरीर काला हो गया क्योंकि उनका शरीर आग में जल गया था ।

शनि की मूर्ति काली क्यों है और पिंपल के पेड़ की पूजा क्यों की जाती है, इसका रहस्य उपरोक्त कहानी में छिपा है। इसके अलावा, पिप्पलाद ने प्रसोपनिषद की रचना की।

आज भी इन उपनिषदों को ज्ञान का कभी न समाप्त होने वाला भण्डार कहा जाता है।

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