
धनतेरस 2025 तिथि मुहूर्त | धनतेरस लक्ष्मी पूजा विधि | धनतेरस की कहानी
धनतेरस 2025 भारत हिन्दू संस्कृतिमे मनाने वाला सबसे त्यौहार है. धनतेरस को धनत्रयोदशी 2025 भी कहा जाता है. दीपावली एक साथ आने वाले पार्वो में से धनतेरस एक त्यौहार है. धनतेरस कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है. धनतेरस का पूजन माता लक्ष्मी के पूजन के रूप में मनाया जाता है. पुराणी मान्यताओ नुसार इस दिन सोने चांदी की खरीद की जाती है. धनतेरस को सोना, चांदी ख़रीदनेसे माता लक्ष्मी घर में निवास करती है. व्यक्ति और घर के संपत्ति में वृद्धि होती है. माता धन्वंतरि समुद्र मंथन के दौरान धनतेरस के दिन प्रकट हुई थी. इसलिए इस त्यौहार को धनतेरस नाम से जाना जाता है.
भगवान महावीर धनतेरस के दिन तीसरे और चौथे ध्यान में चले गए
दीपावली के दीपोत्सव की शुरुवात धनतेरस से होती है. जैन सम्प्रदाय में धनतेरस को धन्य तेरस, ध्यान तेरस के नाम से भी जाना जाता है. जैन मान्यताओं के अनुसार भगवान महावीर निर्वाण के प्राप्ति हेतु, निरोध कर रहे थे. तब धनतेरस के दिन तीसरे और चौथे ध्यान में चले गए थे. इस के बाद दीपावली के दिन भगवान महावीर ने निर्वाण यानि मोक्ष की प्राप्ति की. इसलिए धनतेरस जैन सम्प्रदाय में धन्य तेरस के नाम से प्रचलित है.
धन्वंतरी देवी से धनतेरस की कहानी
समुद्र मंथन के दौरान कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को देवी धन्वन्तरी अमृत के कलश के साथ समुद्र से प्रकट हुई थी. इसलिए धनतेरस के दिन बर्तन खरीदना अति शुभ दायक समजा जाता है. विशेषत: पीतल, सोना इसके बर्तन खरीदना अति शुभदायक है. इससे घर में धन की कमी नहीं आती है. माता धन्वन्तरी अमृत कलश के साथ प्रकट हुई थी. इसलिए धन्वन्तरी को आयुर्वद, और वैद्यकीय चिकित्सा का कारक भी कहा जाता है. इसलिए माता धन्वन्तरी का पूजन इस दिन करने से आरोग्य और ऐश्वर्या का लाभ होता है.
धनतेरस 2025 कब है ? त्यौहार तिथि और मुहूर्त
गुरुवार 01 जनवरी 1970
Wed, 31 Dec, 12:00 AM से 12:00 AM
Wed, 31 Dec, 12:00 AM से 12:00 AM तक
12:00 AM से 12:00 AM
12:00 AM से 12:00 AM
धनतेरस के दिन दक्षिण दिशा में दिप जलाने का विधान
धनतेरस 2025 के दिन दक्षिण दिशा में दिप जलाने का विधान है. धनतेरस के दिन लक्ष्मी, धन्वन्तरी के साथ कुबेर और यमराज की भी पूजा की जाती है. कुबेर और यमराज दक्षिण दिशा में निवास करते है. तथा कुबेर सभी प्रकार के जेवर, संपत्ति, रुपये, पैसे, रत्न इन का कारक माने जाते है. इसलिए इस दिन कुबेर की पूजा की जाती है. यमराज की पूजा का विधान पौराणिक ग्रंथो मे मिलता है. अब जानते है, यमराज की पूजा इस दिन क्यों की जाती है. एक दिन यमदूत ने यमराज से पूछा, “इतने सारे अकाली मृत्यु होते है. आखिर अकाली मृत्यु से मानव कैसे बच सकता है ? ” यमराज ने कहा, “अगर कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन जो दक्षिण दिशा में मेरे नाम से जो दीपक जलाता है. फल स्वरूप अकाल मृत्यु के भय से उसे और परिवार वालों को मुक्ति मिलती है.”
धनतेरस की पूजा विधि कैसे की जाती है ?
- धनतेरस की पूजा शाम को प्रभावी होती है.
- धनतेरस के मुहूर्त पर माता लक्ष्मी, धन्वन्तरि, कुबेर के साथ श्री गणेश की प्रतिमा या मूर्ति पूर्व या उत्तर दिशा में रखे.
- चारो देवताओं को नए वस्त्र पहनाये, खासकर कुबेर को सफ़ेद, धन्वन्तरि, लक्ष्मी और गणेश को पीला वस्त्र.
- कुबेर के लिए सफ़ेद और माता धन्वन्तरि, लक्ष्मी और गणेश के लिए पिली मिठाई का भोग लगाए.
- धन्वन्तरि को धनिया के लड्डू या प्रसाद, (धनिया बारीक पिसा हुआ, गूढ़ के साथ) पूजा के थाली में, फल फूल, चावल, चन्दन, धुप, अगरबत्ती, व दिप रखे.
- घर के जेवरात, रत्न, पैसे इन की भी पूजा करे.
- दक्षिण दिशा में यमराज के नाम से श्रद्धाभाव के साथ एक दिप अवश्य जलाये.
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